रोशनी के लिए घर जलाते हैं हम
प्यास को आंसुओं से बुझाते हैं हम
भूख होती नहीं जब भी बर्दाश्त है
फांसियों को गले से लगाते हैं हम
... आज भी हममे गैरत है ईमान है
धरती मां में ही बसती ये जान है
हर फसल को पसीने से हम सींचते
धरती क़ी गोद ही अपनी पहचान है
श्रम का संसार ही अपना संसार है
श्रम क़ी बाँहों में ही अपना घर-द्वार है
जिंदगी साथ हमारा भले छोड़ दे
मां क़ी बाँहों में बस प्यार ही प्यार है
भूख से हम भले ही तड़पते रहे
देश क़ी भूख हम ही मिटाते रहे
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