Saturday 5 May 2012

Rajput





किसान क़ी आत्म कथा


रोशनी के लिए घर जलाते हैं हम

प्यास को आंसुओं से बुझाते हैं हम


भूख होती नहीं जब भी बर्दाश्त है

फांसियों को गले से लगाते हैं हम


... आज भी हममे गैरत है ईमान है

धरती मां में ही बसती ये जान है


हर फसल को पसीने से हम सींचते

धरती क़ी गोद ही अपनी पहचान है


श्रम का संसार ही अपना संसार है

श्रम क़ी बाँहों में ही अपना घर-द्वार है


जिंदगी साथ हमारा भले छोड़ दे

मां क़ी बाँहों में बस प्यार ही प्यार है


भूख से हम भले ही तड़पते रहे

देश क़ी भूख हम ही मिटाते रहे
 
 
 

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